चौपाल

आए हो तो थोड़ी देर रुक जाओ भई !!!!

मुश्किल है अपना मेल प्रिये जून 2, 2009

डॉ. सुनील जोगी की एक बड़ी लोकप्रिय हास्य- कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ.

आनंद लीजिये………..

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये
तुम एम.ए. फर्स्‍ट डिवीजन हो
मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये

तुम फौजी अफसर की बेटी
मैं तो किसान का बेटा हूं
तुम रबडी खीर मलाई हो
मैं तो सत्‍तू सपरेटा हूं
तुम ए.सी. घर में रहती हो
मैं पेड. के नीचे लेटा हूं
तुम नई मारूति लगती हो
मैं स्‍कूटर लम्‍ब्रेटा हूं
इस तरह अगर हम छुप छुप कर
आपस में प्‍यार बढाएंगे
तो एक रोज तेरे डैडी
अमरीश पुरी बन जाएंगे
सब हड्डी पसली तोड. मुझे
भिजवा देंगे वो जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

तुम अरब देश की घोडी हो
मैं हूं गदहे की नाल प्रिये
तुम दीवाली का बोनस हो
मैं भूखों की हड.ताल प्रिये
तुम हीरे जडी तस्‍तरी हो
मैं एल्‍युमिनियम का थाल प्रिये
तुम चिकेन, सूप, बिरयानी हो
मैं कंकड. वाली दाल प्रिये
तुम हिरन चौकडी भरती हो
मैं हूं कछुए की चाल प्रिये
तुम चन्‍दन वन की लकडी हो
मैं हूं बबूल की छाल प्रिये
मैं पके आम सा लटका हूं
मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

मैं शनिदेव जैसा कुरूप
तुम कोमल कंचन काया हो
मैं तन से, मन से कांशी हूं
तुम महाचंचला माया हो
तुम निर्मल पावन गंगा हो
मैं जलता हुआ पतंगा हूं
तुम राजघाट का शांति मार्च
मैं हिन्‍दू-मुस्लिम दंगा हूं
तुम हो पूनम का ताजमहल
मैं काली गुफा अजन्‍ता की
तुम हो वरदान विधाता का
मैं गलती हूं भगवन्‍ता की
तुम जेट विमान की शोभा हो
मैं बस की ठेलमपेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

तुम नई विदेशी मिक्‍सी हो
मैं पत्‍थर का सिलबट्टा हूं
तुम ए.के. सैंतालिस जैसी
मैं तो इक देसी कट्टा हूं
तुम चतुर राबडी देवी सी
मैं भोला-भाला लालू हूं
तुम मुक्‍त शेरनी जंगल की
मैं चिडि.याघर का भालू हूं
तुम व्‍यस्‍त सोनिया गांधी सी
मैं वी.पी. सिंह सा खाली हूं
तुम हंसी माधुरी दीक्षित की
मैं पुलिस मैन की गाली हूं
गर जेल मुझे हो जाए तो
दिलवा देना तुम बेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

मैं ढाबे के ढांचे जैसा
तुम पांच सितारा होटल हो
मैं महुए का देसी ठर्रा
तुम चित्रहार का मधुर गीत
मैं कृषि दर्शन की झाडी हूं
मैं विश्‍व सुंदरी सी महान
मैं ठेलिया छाप कबाडी हूं
तुम सोनी का मोबाइल हूं
मैं टेलीफोन वाला चोंगा
तुम मछली मानसरोवर की
मैं सागर तट का हूं घोंघा
दस मंजिल से गिर जाउंगा
मत आगे मुझे ढकेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

तुम जयप्रदा की साडी हो
मैं शेखर वाली दाढी हूं
तुम सुषमा जैसी विदुषी हो
मैं लल्‍लू लाल अनाडी हूं
तुम जया जेटली सी कोमल
मैं सिंह मुलायम सा कठोर
मैं हेमा मालिनी सी सुंदर
मैं बंगारू की तरह बोर
तुम सत्‍ता की महारानी हो
मैं विपक्ष की लाचारी हूं
तुम हो ममता जयललिता सी
मैं क्‍वारा अटल बिहारी हूं
तुम संसद की सुंदरता हो
मैं हूं तिहाड. की जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्‍यार नहीं है खेल प्रिये

………………………

डॉ. सुनील जोगी

 

सांध्य सुंदरी – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” फ़रवरी 1, 2009

दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह सांध्य सुंदरी परी-सी-
धीरे धीरे धीरे।
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास
मधुर मधुर हैं दोनों उसके अधर-
किन्तु ज़रा गंभीर – नहीं है उनमें हास विलास।
हँसता है तो केवल तारा एक
गुँथा हुआ उन घुँघराले काले बालों से,
हृदयराज्य की रानी का वह करता है अभिषेक।
अलसता की सी लता
किंतु कोमलता की वह कली
सखी नीरवता के कंधे पर डाले बाँह,
छाँह सी अंबर-पथ से चली।
नहीं बजती उसके हाथों में कोई वीणा
नहीं होता कोई अनुराग राग आलाप
नूपुरों में भी रूनझुन रूनझुन नहीं
सिर्फ़ एक अव्यक्त शब्द-सा “चुप, चुप, चुप”
है गूँज रहा सब कहीं-
व्योम मंडल में – जगती तल में –
सोती शांत सरोवर पर उस अमल कमलिनी दल में
सौन्दर्य गर्विता सरिता के अतिविस्तृत वक्षस्थल में
धीर वीर गंभीर शिखर पर हिमगिरि अटल अचल में
उत्ताल तरंगाघात प्रलय घन गर्जन जलधि प्रबल में
क्षिति में जल में नभ में अनिल अनल में
सिर्फ़ एक अव्यक्त शब्द-सा “चुप, चुप, चुप”
है गूँज रहा सब कहीं-
और क्या है? कुछ नहीं।
मदिरा की वह नदी बहाती आती
थके हुए जीवों को वह सस्नेह
प्याला एक पिलाती
सुलाती उन्हें अंक पर अपने
दिखलाती फिर विस्मृति के वह अगणित मीठे सपने
अर्धरात्रि की निश्चलता में हो जाती जब लीन
कवि का बढ़ जाता अनुराग
विरहाकुल कमनीय कंठ से
आप निकल पड़ता तब एक विहाग।

 

मेरे अध्ययन की भाषा – कोरियन अक्टूबर 25, 2008

Filed under: मेरे अध्ययन की भाषा - कोरियन — Satish Satyarthi @ 9:18 पूर्वाह्न
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जैसा कि अबतक आप जान गये होंगे कि मैं जे.एन.यू के कोरियन सेंटर से कोरियन भाषा में बी.. कर रहा हूं। इस लेख में मैं आपको इस भाषा के बारे में थोडी और जानकारी देना चाहता हूं।

कोरियन दक्षिण और उत्तरी कोरिया दोनों देशों की राजभाषा है। यह दुनिया में लगभग करोड लोगों के द्वारा बोली जाती है तथा विश्व मे सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं मे १३वें स्थान पर आती है। इसके वर्गीकरण को लेकर लैंग्युएज साइंटिस्ट्स में विवाद है। कुछ लोग इसे अल्टाइक फैमिली मे रख्ते हैं तो कुछ इसे लैंगुएज आइसोलेट मानते हैं। इसकी वाक्यसंरचना हिन्दी की तरह कर्ता+कर्म+क्रिया है। इस भाषा कि लिपिहंगलहै जिसका आविष्कार १४४९ . में किंग सेजोंग के द्वारा किया गया था। इसके पहले कोरिया मे चीनी भाषा बोली जाती थी। हंगल की खोज ने कोरिया मे साक्षरता को बढाने मे बहुत योगदान दिया है क्योंकि यह चीनी भाषा कि तुलना मे अत्यंत सरल है। इसे दुनिया कि सबसे साइंटिफिक लेखन पद्धतियों मे से एक माना जाता है। हंगल में कुल २४ अक्षर है जिनमें से १० स्वर और १४ व्यंजन है.

कोरियन वर्णमाला (ध्यान रखें की इसमें कम्पाउंड  लेटर्स �ी शामिल हैं.)

कोरियन वर्णमाला (ध्यान रखें की इसमें कम्पाउंड लेटर्स भी शामिल हैं.)

कोरियन पर आज भी चीनी भाषा का प्रभाव साफ़ दिखाई पडता है। कोरियन के तकरीबन ६०% शब्द चीनी उत्पत्ति के हैं जिन्हे कोरिया मेहान्जाकहा जाता है। खासकर पारंपरिक लेखन में आज भी मुख्यतः चाइनीज़ कैरेक्टर्स का इस्तेमाल किया जाता है। अखबारों तथा साहित्यिक रचनाओं में भीहान्जाका प्रयोग प्रचलित है। अतः कुछ महत्वपूर्ण चाइनीज़ कैरेक्टर्स को जाने बिना कोरियन भाषा मे दक्षता हासिल नहीं की जा सकती।