आधुनिक काल में ही मगही के अनेक रुप दृष्टिगत होते हैं। मगही भाषा का क्षेत्र विस्तार अति व्यापक है; अतः स्थान भेद के साथ–साथ इसके रूप बदल जाते हैं । प्रत्येक बोली या भाषा कुछ दूरी पर बदल जाती है। मगही भाषा के निम्नलिखित भेदों का संकेत भाषाविद कृष्णदेव प्रसाद ने किया है :–
आदर्श– मगही
यह मुख्यत: गया जिले में बोली जाती है।
शुद्ध –मगही
इस प्रकार की मगही राजगृह से लेकर बिहारशरीफ के उत्तर चार कोस बयना स्टेशन (रेलवे) पटना जिले के अन्य क्षेत्रों में बोली जाती है
टलहा –मगही
टलहा मगही मुख्य रुप से मोकामा, बड़हिया, बाढ़ अनुमण्डल के इस पार के कुछ पूर्वी भाग और लक्खीसराय थाना के कुछ उत्तरी भाग गिद्धौर और पूर्व में फतुहां में बोली जाती है।
सोनतरिया मगही
सोन नदी के तटवर्ती भू–भाग में पट्ना और गया जिले में सोनतरिया मगही बोली जाती है।
जंगली मगही
राजगृह, गया, झारखण्ड प्रदेश के छोटानागपु (उत्तरी छोटानागपुर मूलत🙂 और विशेषतौर से हजारीबाग के वन्य या जंगली क्षेत्रों में जंगली मगही बोली जाती है।
भाषाविद ग्रियर्सन महोदय ने मगही के एक अन्य रूप ’पूर्वी मगही’ का उल्लेख किया है। ग्रियर्सन महोदय के अनुसार पूर्वी मगही का क्षेत्र हजारीबाग, मानभूम, दक्षिणभूम, दक्षिणपूर्व रांची तथा उड़ीसा में स्थित खारसावां एवं मयुरभंज के कुछ भाग तथा छत्तीसगढ़ के वामड़ा में है। मालदा जिले के दक्षिण में भी ग्रियर्सन पूर्वी–मगही की स्थिति स्वीकार करते हैं।
मगही भाषा के प्राचीन साहित्येतिहास का प्रारम्भ आठवीं शताब्दी के सिद्ध कवियों की रचनाओं से होता है। सरहपा की रचनाओं का सुव्यवस्थित एवं वैज्ञानिक संस्करण दोहाकोष के नाम से प्रकाशित है जिसके सम्पादक महापणिडत राहुल सांकृत्यायन हैं। सिद्धों की परम्परा में मध्यकाल के अनेक संतकवियों ने मगधी भाषा में रचनायें की। इन कवियों में बाबा करमदास, बाबा सोहंगदास, बाबा हेमनाथ दास आदि अनेक कवियों के नाम उल्लेख हैं।
आधुनिक काल में लोकभाषा और लोकसाहित्य सम्बन्धी अध्ययन के परिणामस्वरुप मगही के प्राचीन परम्परागत लोकगीतों, लोककथाओं, लोकनाट्यों, मुहावरों, कहावतों तथा पहेलियों का संग्रह कार्य बड़ी तीव्रता के साथ किया जा रहा है। साथ ही मगही भाषा में युगोचित साहित्य, अर्थात् कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, एकांकी, ललित निबन्ध आदि की रचनाएं, पत्र–पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं भाषा और साहित्य पर अनुसंधान भी हो रहे हैं।
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किसने गरियाया किसने सराहा