निर्मम संसार
वायु के मिस भर भरकर आह।
ओस मिस बहा नयन जलधार।
इधर रोती रहती है रात।
छिन गये मणि मुक्ता का हार।।१।।
उधर रवि आ पसार कर कांत।
उषा का करता है शृंगार।
प्रकृति है कितनी करुणा मूर्ति।
देख लो कैसा है संसार।।२।।
मानव ममता है मतवाली।
अपने ही कर में रखती है सब तालों की ताली।
अपनी ही रंगत में रंगकर रखती है मुँह लाली।
ऐसे ढंग कहा वह जैसे ढंगों में हैं ढाली।
धीरे धीरे उसने सब लोगों पर आँखें डाली।
अपनी सी सुन्दरता उसने कहीं न देखी-भाली।
अपनी फुलवारी की करती है वह ही रखवाली।
फूल बिखेरे देती है औरों पर उसकी गाली।
भरी व्यंजनों से होती है उसकी परसी थाली।
कैसी ही हो, किन्तु बहुत ही है वह भोलीभाली।।१।।
रंग कब बिगड़ सका उनका
रंग लाते दिखलाते हैं।
मस्त हैं सदा बने रहते।
उन्हें मुसुकाते पाते हैं।।१।।
भले ही जियें एक ही दिन।
पर कहा वे घबराते हैं।
फूल ह सते ही रहते हैं।
खिला सब उनको पाते हैं।।२।।
रहा है दिल मला करे।
न होगा आ सू आये।
सब दिनों कौन रहा जीता।
सभी तो मरते दिखलाये।।१।।
हो रहेगा जो होना है
टलेगी घड़ी न घबराये।
छूट जायेंगे बंधन से।
मौत आती है तो आये।।२।।
प्यासी आँखें
कहें क्या बातें आँखों की।
चाल चलती हैं मनमानी।
सदा पानी में डूबी रह।
नहीं रख सकती हैं पानी।।१।।
लगन है रोग या जलन है।
किसी को कब यह बतलाया।
जल भरा रहता है उनमें।
पर उन्हें प्यासी ही पाया।।२।।
आँसू और आँखें
दिल मसलता ही रहता है।
सदा बेचैनी रहती है।
लाग में आ आकर चाहत।
न जाने क्या क्या कहती है।।१।।
कह सके यह कोई कैसे।
आग जी की बुझ जाती है।
कौन सा रस पाती है जो।
आँख आँसू बरसाती है।।२।।
किसने गरियाया किसने सराहा